भोर
अद्भुत है यह बेला
सच अद्भुत है बेला
अवनि अम्बर का संगम तट
विस्तृत अथाह जलधि घट
उतरी ऊषा धारे
काली कमली पट
सिहरत चलत झट पट झट
सन सर सन धिरकत मलय मगन
उठत उगत विश्वस्त
पटका धर सन्तन सम
निरखत तल थाह
खेलत शिशु बन
एक एक कर मिलहिं सबहिं
धरनि जल पावक गगन समीर
तबहिं ऊषा घट भर उचकत
चलत चितवत चहुँ दिस
मटकत फिरत इत उत
चपला बन चितहर
सुगन्धित सुरमयी सुंदर मनहर
खग करत विलोकि प्रभावरी
होत व्यतीत विदा विभावरी
स्वरचित
मीरा परिहार ”मंजरी 28/11/2018