भूख
किसकी खातिर लोग यहाँ हैं, हरपल जीते मरते?
यार बताओ जरा सोच कर, भूख किसे है कहते?
राजमहल हो सोने का या, सिर पर मुकुट चमकता
आग लगी हो अगर पेट में, सब कुछ फीका लगता
मतलब ये शाही वैभव भी, क्षणिक दुःख ही हरते
यार बताओ जरा सोच कर, भूख किसे हैं कहते?
दूध भात की भरी कटोरी, है शिशु भी ठुकराता
नहीं सामने माँ यदि होती, चैन कहाँ वो पाता
भोज्य शताधिक भी आखिर क्यों, पेट न उसका भरते
यार बताओ ज़रा सोच कर, भूख किसे है कहते?
माया की जो तोड़ बेड़िया, प्रभु का ध्यान लगाते
किसके कारण छोड़ गृहस्थी, सन्यासी बन जाते
नाते रिश्ते जग के उनको, सगे नहीं क्यों लगते ?
यार बताओ ज़रा सोच कर, भूख किसे है कहते?
भूख मिटाने का वादा कर, दिवा स्वप्न दिखलाते
सदा विषय को खूब भुनाते, हमको मूर्ख बनाते
राजनीति के दाँवपेंच को, हम हैं नहीं समझते
यार बताओ जरा सोच कर, भूख किसे है कहते?
नाथ सोनांचली