भूखे का चाँद
चांद का तकिया बना कर
चैन की नींद सोने का ख्वाब
देखने की जुर्रत
वो कैसे करे….
जो फुटपाथ पर
भूख से तिलमिलाता
तिल तिल मरे…
उसे चांद में तकिया नही
चांद ही रोटी सा लगे..!
वो रोटी जो बस
दिखती तो है
पर मयस्सर नहीं.. .
वो सारी रात
रोटी से दिखते चांद को तके…
कुलबुलाते पेट के साथ
सारी रात जगे..
क्योंकि उसे पूर्णमासी का
खूब सूरत गोल गोल चांद…
नर्म मुलायम रेशमी
तकिए सा नहीं…
बल्कि ताजी नरम
गोल सिक कर
फूल गई रोटी सा लगे…
और सिकी हुई रोटी की
सौंधी खुशबू को सोच- सोच
पेट बाँध कर जगे।।