भिन्न भिन्न रोशनी
दिया जलकर करतीं उजाला,
पर भिन्न होती,
रोशनी सभी के लिए।
घर में हमारे सजती देवों के थाली में,
गृहणी करती अपने घर प्रकाशित,
उस दिया के बाती से।
दिया तो एक ही है,
पर प्रकाश देती भिन्न प्रकार के।
तवायफ़ भी सजातीं उससे अपने कोठे को,
पर शायद अनजाने में ही ,
अपने सुख के लिए घर कितनों का तोड़ देती है।
यह प्रकाश का ही तो कमाल,
जो सुन्दरता दिखातीं है उसकी पर सच्चाई नहीं।
गुरु देता ज्ञान उसके ही रोशनी में
कितनों का ज़िन्दगी संवार देता है।
एक तेल,एक ही बाती दीपक की,
पर करता उजाला भिन्न सभी के लिए।
शांत रहता तो देता सुख सभी को,
विकराल जब हो जाए,
तब सोने कि लंका भी नहीं बच पाती,
दीपक अंधेरा इस जग में रोशनी भरता,
पर कभी – कभी
उजाले को भी अंधकार में धकेल देता