भिखारी छंद एवं विधाएँ
#भिखारी_छंद (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- २४ मात्रा, १२-१२पर यति, सभी समकल, अंत वाचिक गा गा, ध्यातव्य है कि विषम और विषम मिल कर सम हो जाते हैं |
छंद
बस्ता बोझा माना , लगता था वह भारी |
वह बोरा अब ढोते , करते पल्लेदारी ||
बस्ता जिसने पकड़ा , पुस्तक पढ़ ली प्यारी ||
बनकर के वह ज्ञानी ,कुर्सी का अधिकारी ||
पुस्तक पढ़कर इंसा , ज्ञानी जब बन जाता |
बनता साधक सच्चा , राह सही अपनाता ||
सदाचरण के झंडे , वह जग में फहराता |
हरदम मानवता से , रखता है वह नाता ||
मिलती रहती उसको , माँ शारद की माला |
मिले ज्ञान की कुंजी , खोले हर पग ताला ||
जीत हौसला देती , मिले हार से शिक्षा |
कभी न माँगे जग में , आकर कोई भिक्षा |
सदाचरण का साथी , जीवन भर है रहता |
न्याय नीति की बातें , अपने मुख से कहता ||
पग देखे है उसके , रहे सदा ही आगे |
पक्के बनते कच्चे , उससे छूकर धागे ||
सुभाष सिंघई
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मुक्तक
धारें पुस्तक वीणा , नमो शारदे माता |
हंसवाहिनी देवी , कवि मन नवल प्रभाता |
हर अक्षर है ज्ञानी , माँ के मुख से निकले ~
नई इबारत लिखने , माता रखतीं नाता ||
आनन माँ शारद के , भरी दिव्यता मिलती |
आशीषों के बीजों से , सदा कोंपलें खिलती |
माता को जो माने , अनुकम्पा की देवी-
तब विखरे छंदों को , माँ आकर खुद सिलती |
शारद माँ जो पूजे , लिखता नई कहानी |
ज्ञान ह्रदय में धारे , बाँटे बनकर दानी ||
जग भी वंदन करके , अभिनंदन है करता ~
वेद शास्त्र भी देते , अनुकम्पा का पानी |
सुभाष सिंघई
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मुक्तक (अपनी “मुस्कराते मुक्तक ” ) बुक से –
भिखारी छंद
रुख लिबास ही अब तो , यह पहचाने दुनिया ,
कहाँ उतरना दिल में अब यह जाने दुनिया ,
चले बनावट अब तो, चलन आजकल देखें ~
सत्य बोलना अच्छा , कब यह माने दुनिया |
ग्राहक ही अब बिकता , देखा बाजारों में ,
मीठी बातें मिलती , केवल मक्कारों में ,
कौन फरिश्ता सुनता , कहता बोल सुभाषा –
सत्य न्याय का याचक , झूठें दरबारों में |
सुभाष सिंघई
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भिखारी छंद , गीतिका अपदांत
सुंदर लगती छाया , मन भाए हरियाली |
ऐसा लगता सबको , बजा उठे हम ताली ||
पत्थर नहीं उठाना , फेंक न देना उनको ,
लगे जहाँ पर हँसते , पेड़ तने है आली |
पेड़ हमेशा हमको , फूल फलों को देते,
जो भी आता उनको , कभी न भेजे खाली |
पेड़ लगाना यारो , जैसा भी मौसम हो ,
पुण्य कमाना अपना , बनकर उनका माली |
पेड़ सदा उपयोगी , रोग हमारे हरते ,
कह सुभाष हितकारी , उनकी डाली- डाली |
सुभाष सिंघई
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गीतिका
स्वर – आता , पदांत रोगी
लालच मानव लाता , बनता जाता रोगी |
धन दौलत का पूरा , गाना गाता रोगी ||
नहीं बात को माने , लालच बुरी बला है ,
हाय-हाय परसादी , घर में लाता रोगी |
छल छंदों को पढ़ता , पूरा रटे पहाड़ा ,
पैसा बीमारी से , रखता नाता रोगी |
जनसेवा से दूरी , अपनी सदा बनाता ,
अम्बर बनता रुपया , ताने छाता रोगी |
कौन उसे समझाता , रखे कान जो बहरा ,
लालच की बस रोटी , रूखी खाता रोगी |
सुभाष सिंघई
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गीतिका , स्वर – अर , पदांत कौन कहेगा
लाख टका है कीमत , मलकर कौन कहेगा |
सत्य धर्म की बातें , चलकर कौन कहेगा ||
मतलब अपना रखते , हाथ पाँव को जोड़ें |
अब सेवा का मेवा , तलकर कौन कहेगा ||
नमक मिर्च भी डाले घृत का होम लगाते ,
गलत हुआ वर्ताव , जलकर कौन कहेगा |
पंचायत पंचों ने , अब तो मौन लगाया ,
न्याय नीति के साँचे , ढलकर कौन कहेगा |
काँटे उगें बबूली, सींच रहे है माली ,
सत्य बीज अब बनके, फलकर कौन कहेगा |
मिलते है अब छलिया , देते रहते चोटें ,
अब सीधा ही उनको , छलकर कौन कहेगा |
बगुलों की अब टोली, भजन सुनाती सबको
जाल बिछाते जो भी , बचकर कौन कहेगा |
सुभाष सिंघई
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भिखारी_छंद (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- २४ मात्रा, १२-१२पर यति, सभी समकल, अंत वाचिक
गा गा , ध्यातव्य है कि विषम और विषम मिल कर सम हो जाते हैं |
स्वर अति , पदांत न्यारी
रहे गाँव में गोरी, बातें तलती न्यारी |
चर्चा है सुंदरता , छम-छम चलती न्यारी |
चंद्र लगे मुख गोरी, नहीं सूझती उपमा ,
पलक नयन है तीखे , हर पल मलती न्यारी |
चढ़ी नाक पर नथनी , सूरज – सी है दमके ,
लगता सूरज को ही , वह अब छलती न्यारी ||
सावन -भादों बरसे , मुख पर आएँ बूँदे ,
कलम यहाँ पर लिखती, आभा ढलती न्यारी |
केश लटाएं झुककर , गालों को जब छूती ,
लगे सुमन की डाली , वन में पलती न्यारी ||
होंठ कमल दल लगते, कहता बोल सुभाषा,
सब कुछ उसका अच्छा , उसकी गलती न्यारी ||
सुभाष सिंघई
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आधार छंद- भिखारी (मापनीमुक्त मात्रिक)
गीत
चापलूस को मिलती, करने दुनियादारी | मुखड़ा
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक
चापलूस के जानो , कीट जहाँ पर आते |
अच्छे – अच्छों की वह , संतोषी हर जाते ||
बीट हमेशा करते , घुमा फिराकर बातें |
आगे पीछें सबको चौकस देते घातें ||
चापलूस संगत है , अब चाहर दीवारी | पूरक
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक
आडम्बर को रचता , माया को फैलाता | अंतरा
घातक उल्टे सीधे , सपनों को दिखलाता ||
नहीं आचरण उसके , किसी काम में आते |
उसकी पूरीं बातें , कचड़ा ही फैलाते ||
अजब गजब है लीला , उसकी अद्भुत न्यारी |
पालक को मिल जाती , घर बैठे बीमारी || टेक
नहीं जरुरत फिर भी , देता रहे सलाहें |
बेमतलब की सबसे , दिखलाता है चाहें ||
अपनी-अपनी फाँके, नहीं किसी को मौका |
झूँठ बिछाकर पिच पर , मारे छक्का चौका ||
कलयुग का शैतानी , जानो है अवतारी |
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक
सुभाष सिंघई जतारा
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