Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Nov 2022 · 4 min read

भिखारी छंद एवं विधाएँ

#भिखारी_छंद (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- २४ मात्रा, १२-१२पर यति, सभी समकल, अंत वाचिक गा गा, ध्यातव्य है कि विषम और विषम मिल कर सम हो जाते हैं |

छंद
बस्ता बोझा माना , लगता था वह भारी |
वह बोरा अब ढोते , करते पल्लेदारी ||
बस्ता जिसने पकड़ा , पुस्तक पढ़ ली प्यारी ||
बनकर के वह ज्ञानी ,कुर्सी का अधिकारी ||

पुस्तक पढ़कर इंसा , ज्ञानी जब बन जाता |
बनता साधक सच्चा , राह सही अपनाता ||
सदाचरण के झंडे , वह जग में फहराता |
हरदम मानवता से , रखता है वह नाता ||

मिलती रहती उसको , माँ शारद की माला |
मिले ज्ञान की कुंजी , खोले हर पग ताला ||
जीत हौसला देती , मिले हार से शिक्षा |
कभी न माँगे जग में , आकर कोई भिक्षा |

सदाचरण का साथी , जीवन भर है रहता |
न्याय नीति की बातें , अपने मुख से कहता ||
पग देखे है उसके , रहे सदा ही आगे |
पक्के बनते कच्चे , उससे छूकर धागे ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~~
मुक्तक

धारें पुस्तक वीणा , नमो शारदे माता |
हंसवाहिनी देवी , कवि मन नवल प्रभाता |
हर अक्षर है ज्ञानी , माँ के मुख से निकले ~
नई इबारत लिखने , माता रखतीं नाता ||

आनन माँ शारद के , भरी दिव्यता मिलती |
आशीषों के बीजों से , सदा कोंपलें खिलती |
माता को जो माने , अनुकम्पा की देवी-
तब विखरे छंदों को , माँ आकर खुद सिलती‌ |

शारद माँ जो‌ पूजे , लिखता नई कहानी |
ज्ञान ह्रदय में धारे , बाँटे बनकर दानी ||
जग भी वंदन करके , अभिनंदन है करता ~
वेद शास्त्र भी देते , अनुकम्पा का पानी |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~

मुक्तक (अपनी “मुस्कराते मुक्तक ” ) बुक से –
भिखारी छंद

रुख लिबास ही अब तो , यह पहचाने दुनिया ,
कहाँ उतरना दिल में अब यह जाने दुनिया ,
चले बनावट अब तो‌, चलन आजकल देखें ~
सत्य बोलना अच्छा , कब यह माने दुनिया |

ग्राहक ही अब बिकता , देखा बाजारों में ,
मीठी बातें मिलती , केवल मक्कारों में ,
कौन फरिश्ता सुनता , कहता बोल सुभाषा –
सत्य न्याय का याचक , झूठें दरबारों में |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

भिखारी छंद , गीतिका अपदांत

सुंदर लगती छाया , मन भाए हरियाली |
ऐसा लगता सबको , बजा उठे हम ताली ||

पत्थर नहीं उठाना , फेंक न देना उनको ,
लगे जहाँ पर हँसते , पेड़ तने है आली |

पेड़ हमेशा हमको , फूल फलों को देते,
जो भी आता उनको , कभी न भेजे खाली |

पेड़ लगाना यारो , जैसा भी मौसम हो ,
पुण्य कमाना अपना , बनकर उनका माली |

पेड़ सदा उपयोगी , रोग हमारे हरते ,
कह सुभाष हितकारी , उनकी डाली- डाली |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~~~

गीतिका
स्वर – आता , पदांत रोगी

लालच मानव लाता , बनता जाता रोगी |
धन दौलत का पूरा , गाना गाता रोगी ||

नहीं बात को माने , लालच बुरी बला है ,
हाय-हाय परसादी , घर में लाता रोगी |

छल छंदों को पढ़ता , पूरा रटे पहाड़ा ,
पैसा बीमारी से , रखता नाता रोगी |

जनसेवा से दूरी , अपनी सदा बनाता ,
अम्बर बनता रुपया , ताने छाता रोगी |

कौन उसे समझाता , रखे कान जो बहरा ,
लालच की बस रोटी , रूखी खाता रोगी |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~

गीतिका , स्वर – अर , पदांत कौन कहेगा

लाख टका है कीमत , मलकर कौन कहेगा |
सत्य धर्म की बातें , चलकर कौन कहेगा ||

मतलब अपना रखते , हाथ पाँव को जोड़ें |
अब सेवा का मेवा , तलकर कौन कहेगा ||

नमक मिर्च‌‌ भी डाले घृत का होम लगाते ,
गलत हुआ वर्ताव , जलकर कौन कहेगा |

पंचायत पंचों ने , अब तो मौन लगाया ,
न्याय नीति के साँचे , ढलकर कौन कहेगा |

काँटे उगें बबूली‌, सींच रहे है माली‌ ,
सत्य बीज अब बनके, फलकर कौन कहेगा‌ |

मिलते है अब छलिया , देते रहते चोटें ,
अब सीधा ही उनको , छलकर कौन कहेगा |

बगुलों की अब टोली, भजन सुनाती सबको
जाल बिछाते जो भी , बचकर कौन कहेगा |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~

भिखारी_छंद (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- २४ मात्रा, १२-१२पर यति, सभी समकल, अंत वाचिक
गा गा , ध्यातव्य है कि विषम और विषम मिल कर सम हो जाते हैं |
स्वर अति , पदांत न्यारी

रहे गाँव में गोरी, बातें तलती न्यारी |
चर्चा है‌ सुंदरता , छम-छम चलती न्यारी |

चंद्र‌ लगे‌ मुख गोरी‌, नहीं सूझती उपमा ,
पलक नयन है तीखे , हर पल मलती न्यारी |

चढ़ी नाक पर नथनी , सूरज – सी है दमके ,
लगता सूरज को ही , वह अब छलती न्यारी ||

सावन -भादों बरसे , मुख पर आएँ बूँदे ,
कलम यहाँ पर लिखती, आभा ढलती न्यारी |

केश लटाएं झुककर , गालों को जब छूती ,
लगे सुमन की डाली , वन में पलती न्यारी ||

होंठ कमल दल लगते, कहता बोल सुभाषा,
सब कुछ उसका अच्छा , उसकी गलती न्यारी ||

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~~~~

आधार छंद- भिखारी (मापनीमुक्त मात्रिक)
गीत

चापलूस को‌‌ मिलती, करने दुनियादारी | मुखड़ा
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक

चापलूस के जानो , कीट जहाँ पर आते |
अच्छे – अच्छों की वह , संतोषी हर जाते ||
बीट हमेशा करते , घुमा फिराकर बातें |
आगे पीछें सबको चौकस देते घातें ||

चापलूस संगत है , अब चाहर दीवारी | पूरक
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक

आडम्बर को रचता , माया‌ को फैलाता | अंतरा
घातक उल्टे सीधे , सपनों को दिखलाता ||
नहीं आचरण उसके , किसी काम में आते |
उसकी पूरीं बातें , कचड़ा ही फैलाते ||

अजब गजब है लीला , उसकी अद्भुत न्यारी |
पालक को मिल जाती , घर बैठे बीमारी || टेक

नहीं जरुरत फिर भी , देता रहे सलाहें |
बेमतलब की सबसे , दिखलाता है चाहें ||
अपनी-अपनी फाँके, नहीं किसी को मौका |
झूँठ बिछाकर पिच पर , मारे छक्का चौका ||

कलयुग का शैतानी , जानो है अवतारी |
पालक को दे जाता , घर बैठे बीमारी || टेक

सुभाष सिंघई जतारा
========================

Language: Hindi
421 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#छोटी_कविता *(बड़ी सोच के साथ)*
#छोटी_कविता *(बड़ी सोच के साथ)*
*प्रणय*
आज का युग ऐसा है...
आज का युग ऐसा है...
Ajit Kumar "Karn"
अदा बोलती है...
अदा बोलती है...
अश्क चिरैयाकोटी
विजय द्वार (कविता)
विजय द्वार (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
अहसासे ग़मे हिज्र बढ़ाने के लिए आ
अहसासे ग़मे हिज्र बढ़ाने के लिए आ
Sarfaraz Ahmed Aasee
हार से डरता क्यों हैं।
हार से डरता क्यों हैं।
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
अपात्रता और कार्तव्यहीनता ही मनुष्य को धार्मिक बनाती है।
अपात्रता और कार्तव्यहीनता ही मनुष्य को धार्मिक बनाती है।
Dr MusafiR BaithA
राम की रीत निभालो तो फिर दिवाली है।
राम की रीत निभालो तो फिर दिवाली है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
AE888 - Nhà cái nổi bật với Dịch Vụ Hỗ Trợ Khách Hàng Chuyên
AE888 - Nhà cái nổi bật với Dịch Vụ Hỗ Trợ Khách Hàng Chuyên
AE888
दोहे
दोहे
अशोक कुमार ढोरिया
तुलना करके, दु:ख क्यों पाले
तुलना करके, दु:ख क्यों पाले
Dhirendra Singh
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
Atul "Krishn"
उसकी सुनाई हर कविता
उसकी सुनाई हर कविता
हिमांशु Kulshrestha
बीते लम़्हे
बीते लम़्हे
Shyam Sundar Subramanian
4068.💐 *पूर्णिका* 💐
4068.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"रूप-लावण्य"
Dr. Kishan tandon kranti
Temple of Raam
Temple of Raam
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
नाम कमाले ये जिनगी म, संग नई जावय धन दौलत बेटी बेटा नारी।
नाम कमाले ये जिनगी म, संग नई जावय धन दौलत बेटी बेटा नारी।
Ranjeet kumar patre
स्वर्ग से सुंदर अपना घर
स्वर्ग से सुंदर अपना घर
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
एक अधूरी सी दास्तान मिलेगी, जिसकी अनकही में तुम खो जाओगे।
एक अधूरी सी दास्तान मिलेगी, जिसकी अनकही में तुम खो जाओगे।
Manisha Manjari
क्राई फॉर लव
क्राई फॉर लव
Shekhar Chandra Mitra
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
Neelofar Khan
शिवाजी
शिवाजी
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
मैं सोचता हूँ आखिर कौन हूॅ॑ मैं
मैं सोचता हूँ आखिर कौन हूॅ॑ मैं
VINOD CHAUHAN
सोशल मीडिया
सोशल मीडिया
Raju Gajbhiye
मां की ममता को भी अखबार समझते हैं वो,
मां की ममता को भी अखबार समझते हैं वो,
Phool gufran
स्त्री सबकी चुगली अपने पसंदीदा पुरुष से ज़रूर करती है
स्त्री सबकी चुगली अपने पसंदीदा पुरुष से ज़रूर करती है
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन्दिर में है प्राण प्रतिष्ठा , न्यौता सबका आने को...
मन्दिर में है प्राण प्रतिष्ठा , न्यौता सबका आने को...
Shubham Pandey (S P)
--शेखर सिंह
--शेखर सिंह
शेखर सिंह
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
Dr.Pratibha Prakash
Loading...