भिखारी का बैंक
उसने ,
भिखारी से,
पूछा,
“भरपेट खाना,
खा लेते हो?”
जवाब की जगह,
उसकी आंतों में,
फड़कने लगी,
कल रात,वाली,
कच्ची दारू की गैस,
और, फिर,
जब उसने,
दोबारा पूछा,
तुम, जी लेते हो,
इस तरह,
सुनकर,
उस भिखारी की ,
मदहोश,
आंखों में,
नाचने लगा,
उसका बंगला,
और,
दिखाई दिया,
शराब ,जुए के बाद,
गिरवी ,बंगला और बिस्तर,
उस भिखारी के पास,
यादों का खजाना था,
मगर,
अब उसे यह सडक ,
अचछी लगती थी,
और, पसंद थे,
तेज बाइक चलाने वाले,
लौंडे,
जो, जल्दी मे ,
मोबाइल,
जेब से निकालते ,निकालते,
गिरा देते थे,
दस ,बीस ,पचास का,
नोट ,
इसी
सड़क पर