* भाव से भावित *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* भाव से भावित *
तुम अगर किसी दृश्य को लेकर ।
इस तरह संजीदा न होते ।
भाव सुनहरे तुम्हारे भीतर ।
कभी यूं मुखरित न होते ।
दृश्य से प्रेरणा, प्रेरणा से प्रेरित ।
विचार व्यक्त करने में सक्षम न होते ।
झुकाव होना किसी दृश्य के प्रति ।
मानवीय मन की संवेदना की
अभिव्यक्ति को प्रकट करने की ।
कोमल प्रक्रिया है , अभीरूप है
प्रभु प्रदत्त ये ही सार्वजनिक आत्म रूप है
व्यक्तिगत रूप से जुड़े सूत्रों का उपयोग है ।
तुम मुझे फिर इतने दिल से प्रिय न होते ।
तुम अगर किसी दृश्य को लेकर ।
इस तरह संजीदा न होते ।
भाव सुनहरे तुम्हारे भीतर ।
कभी यूं मुखरित न होते ।
चाहिए भावों को एक प्रगतिशील ।
गठबंधन अनुभव दृश्यमानों का ।
विकसित हो जाता है जिससे प्रतिकर्षण ।
उत्कंठा के बासन्ती अभिमानों का ।
ये प्रतिकर्षण आनंदित करता है
मन का प्रतिपल संवर्धन ।
देता है कल्पनाओं को ।
प्रगतिशील व्योम अतिसुन्दर
तुम अगर किसी को लेकर ।
इस तरह संजीदा न होते ।
भाव तुम्हारे भीतर ।
यूं मुखरित न होते ।