भाव दिल में थे न कभी घटे
** भाव दिल में थे न कभी घटे **
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रात-भर बदलते रहे हम करवटें,
बिस्तर पर पड़ी बहुत सी सिलवटें।
पहली नजर की देखनी का सिला,
देखते ही प्यारी सूरत थे मर मिटे।
कांटों भरी डगर महबूब की गली,
पलभर भी थे पथ से न पीछे हटे।
फूलों से भरी बिछाई सेज प्रेम की,
पता नहीं रहते हैं हम से कटे-कटे।
कोशिशें मिलने की नहीं सिरे चढ़ी,
मिल नहीं पाये कभी थे भाग्य फटे।
मनसीरत है चाहे उसे हर हाल में,
भाव उनके दिल में थे न कभी घटे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)