भारत नया बनायें हम
अंधकार है गहन धरा पर आओ इसे मिटायें हम
करें उजाला हर कोने में खुद दीपक बन जायें हम
अलग-अलग कमजोर रहेंगे मिलकर सारे एक हों
मंजिल हमको खोजेगी गर राहें अपनी नेक हों
सत्पथ पर चलने वाला हर शख्स निराला होता है
उसके हाथों की मशाल से जग में उजाला होता है
एक ही मिट्टी,एक हवा है,एक ही सूरज,चाँद,गगन
भारत माँ के लाल सभी हैं फिर कैसा बेगानापन
कर्म करें नित अविरत सुन्दर स्वप्न सजाकर आँखों में
फिर गायेगी बुलबुल छुपकर बैठी है जो शाखों में
चाह नहीं है तुम बेटों का थोड़ा भी अपमान करो
मगर यही है विनती कि बेटी का भी सम्मान करो
बन जाओ पतवार स्वयं तुम कश्ती को खेना सीखो
मिल जायेगा जो चाहोगे पर पहले देना सीखो
नन्हें-मुन्ने पौधों को जल,वायू और प्रकाश मिले
सबको अपनी धरा मिले,सबको अपना आकाश मिले
इतने बरस हुए रोटी,कपड़ा,मकान देना होगा
पढ़ने लिखने का अवसर सबको समान देना होगा
अत्याचार चरम पर पहुँचा धरती माता सहती है
करें दया हम जीव-जन्तुओं पर मानवता कहती है
पौधारोपण करें मगर न काटें कोई वृक्ष हरा
स्वच्छ वायु सब पायें जिससे हरी-भरी हो जाए धरा
स्वच्छ रहेंगे स्वस्थ रहेंगे खत्म बिमारी होगी
तलवार निकालो म्यान से अब रण की तैयारी होगी
भ्रष्टाचार,भूख और भय को मिलकर हमें हराना है
मजहब के ठेकेदारों को भी अब तो समझाना है
जाग उठी है जनता अब ये पीछे-पीछे नहीं चलेगी
चाहे जितनी कोशिश कर लो दाल तुम्हारी नहीं गलेगी
देश के इस गुलशन में आओ सुन्दर पुष्प खिलायें हम
रूढ़िवादिता को ठुकराकर भारत नया बनायें हम