भारत को क्या हो चला है
ये मेरे भारत को क्या हो चला है,
इंशान इंशान को मिटाने को चला है !
ये केसा दौर आ गया है यारों,
हिंदू मुसलमान- मुसलमान हिंदू को मिटाने को चला है !
हज़ारों आए हैं, हज़ारों चले गए इस फ़ानी दुनिया से ,
यारों वो खुद से खुद को मिटाने को चला है !
वो इस मोहब्बत के दौर मैं नफ़रत फेलाने को चला है,
अज़ीब इंशान है यारों खुद को जलाने को चला है !
वो हिंदू मुसलमान को लड़ाने को चला है ,
वो अज़ीब इंशान है यारों खुद को मिटाने को चला है !
वो नफ़रती जाल मैं हमें फ़साने को चला है ,
हमें आपस में लड़ा कर मिटाने को चला है !
इस्माईल की क़लम को रुकाने को चला है,
इस दौर मैं नफ़रत फेलाने को चला है ,
मैं कबसे कह रहा हूँ ए इंशा तुझसे ,
तू क्न्यो खुद से खुद को मिटाने को चला है !
ये मेरे भारत को क्या हो चला है ,
इंशान इंशान को मिटाने को चला है !!
“इस्माईल खान मेवाती”