भारत कि तस्वीर
“फटे पूराने कपडो मे,वो बाहर घुमके आता है
गरीबी नाचती रहती है,और वो भूखा सो जाता है,
तरसती हुयी निगाहे,दो रोटी के निवाले को
सुबह से होती सांझ,जीन्दगी के सवालो को ,
शिक्षा नही ,ना ज्ञान यहा,आदम सा जीवन है
नंगे भारत कि तस्वीर मे भी,लगता अपनापन है,
मेघो को तकती आंखे,थक चुर-चुर हो जाती है
टुटे कृषक का हिय,उम्मीदो पे पानी फिर जाती है,
क्या देखा था ऐसे ही भारत का सपना हमने
या कुर्बानी दी थी, ऐसे ही दिन ले आने की,
हो चला है बुढा यौवन मे ही,यह भारत अपना
बलि चढा दि हमने ही,खाये अपने कसमो की,
हालात नही बदले तो,फिर से क्रान्ती जगाना होगा
करके आन्दोलन पुनः,सपनो का भारत बनाना होगा”