$भाभी$
भाभी
// दिनेश एल० “जैहिंद”
कभी बीवी, कभी पतोहू, कभी भाभी बन जाती हूँ !
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की चाबी हूँ !!
सासु जी की सेवा करके घर में अपना मान
बढ़वा लूँ ।
ससुर जी की तारीफ करके यश अपने नाम लिखवा लूँ ।।
कहीं मलाई, कहीं मिस्री, कहीं बरफी बन
जाती हूँ —-
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की चाबी हूँ ।
मिस्री जैसी बातें करके ननद जी की दुलारी
बन जाऊँ ।
लच्छेदार बातें बनाकर मैं देवर जी का मन भरमाऊँ ।।
क्या कहा, कब कहा, कौन कहा, सब भूल
जाती हूँ —-
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की चाबी हूँ ।
साजन को दिल देकर मैं तो तन-मन सब हार जाऊँ ।
ऐसा बालम, ऐसा साजन, ऐसा प्रियतम
कहाँ पाऊँ ।।
उनका चश्मा, उनकी टाई, उनका रुमाल
बन जाती हूँ —-
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की
चाबी हूँ ।
प्यार में बाँधकर मैं सबको नचा दूँ, ये हुनर
मुझको आए ।
कौन है ऐसा जो मेरे जादुई वचन से कहीं
भागके जाए ।।
घर हित के, जन हित के बैरी को चकमा
दे जाती हूँ —-
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की
चाबी हूँ ।
कभी बीवी, कभी पतोहू, कभी भाभी बन जाती हूँ !
हाँ.. मैं, हाँ.. मैं, मैं तो हर घर के ताले की चाबी हूँ !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
10. 05. 2019