भाई चारे को
क्या कहेंगे भला हम उस भाईचारे को
रोक न पायी जो मुल्क के बँटवारे को ।
गुनाहगार थे कौन औ सज़ा मिली किसे
तरस गए अपने ही अपनों के सहारे को ।
किसी को सत्ता तो किसी को मिला भत्ता
बेबसोमजलूम तो भटकते रहे गुजारे को।
जो थे खुशनसिब वो रह गए महफ़ूज़ मगर
भूले नहीं उस दौर के खौफ़नाक नज़ारे को।
-अजय प्रसाद