” भसियायल बऊआ “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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बऊआ
आब आहां
भसिया गेलहुं !
पता नहिं
कोन दुनियाँ
मे उझरा गेलहुं ?
घुरि कें
नहिं देखैत छी !
समयक
आभाव अछि !!
सासुर मे
लिप्त
रहबाक चाहि !
कर्तव्यक
निर्वाह मे पाछु
नहिं
रहक चाहि !!
जननी
जे जन्म देलनि
स्नेह ,दुलार
सं
पूर्ण केलनि
तकरा बिसरि
आहां
दूर देश
बैसल छी !
घूरियो नहिं
देखैत छी !!
समाजक भार
किछु
कनि -कनि
याद राखि !
कतबो
हम दूर रहि
आत्मीयता
बनल राखि !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
दुमका