भर्ती(व्यंग्य कविता)
पटवारी की भर्ती पर,
अभी नहीं कोई भरोसा।
यू टर्न कब हो जावे,
रखना सदा अंदेशा।
अतिथि बनने फार्म भरे,
लगभग माह जुलाई में।
दिसंबर तक चर्चा नहीं,
भूले सभी पढ़ाई में।
व्यय हुआ गांठ कापैसा,
खून पसीना की थी कमाई।
इतने मेंआ सकती थी ,
ठंड काटने को रजाई।
माना परीक्षा होवी जावे,
पटवारी भर्ती वाली।
फिर भी पेपर लीक होने की,
गारंटी नहीं होती सरकारी।
हां, जांच अवश्य बैठेगी,
निकल जायगी साल।
व्यापम जैसा खेल चलेगा,
सब हो जायेंगे बेहाल।
या फिर मुन्ना भाई करेगा,
यह परीक्षा पास ।
पकड़ लिया तो केस चलेगा,
वरना होगा मालामाल।
इन सब से बच भी जावे,
तो भी नहीं विश्वास।
चुनावी वर्ष में चलता है,
प्रतिबंध रूपी फांस।