प्रेम एक निर्मल,
प्रेम एक निर्मल,
निश्छल, अनुपम
अद्भुत एहसास है,
आनंद है तन का, मन का…
पर….
प्रेम श्रापित भी है, अभिशप्त भी
नियति है इस की अधूरा रह जाना,
सुलगना और मिटाना
दिलों में मचलते
ख्वाब, ख्वाहिश और अरमानों का!!
हिमांशु Kulshreshtha