भरी महफिल
एक आकर्षण सा था, उसके चेहरे में वह चेहरा हमें भा सा गया था, अब सोच तो इस बात की थी , चेहरे पर तो चले गए पर उसके दिल में जाना भूल गए।
सोचा उसके दिल में जाकर उसकी दिल की गहराइयों को देखेंगे,
कि उसके दिल के दरवाजे में झांक के देखा ही था,
जाकर देखा तो पता चला अरे उसके दिल में तो महफिल भरी पड़ी है।
उसके दिल में भरी महफिल में कभी कोई आ रहा था तो कभी कोई जा रहा था हमने भी सोचा हम क्या
करेंगे इस भरी महफिल में, हम महफिल में जाना पसंद नहीं करते इससे अच्छा अकेले ही सही है।
शुक्र मनाओ उसे हमारे आने का एहसास ना हुआ पर ,वरना हम भी उसी महफिल का हिस्सा होते हमारा कभी आना होता तो कभी जाना होता कभी आते कभी जाते रहते।
✍️वंदना ठाकुर ✍️