भटकता चाँद
गर्म रात की ख़ामोशी में
नूर टपकता क्यों रहता है ,
ठिठुर ठिठुर के जाड़े में भी
चाँद भटकता क्यों रहता है ,
नील गगन में जुगनू जैसे
अनगिनत सितारे जलते बुझते ,
डूब इश्क़ में देख चाँद को
शर्म से बादल में जा छुपते ,
हुस्न की महफ़िल में आवारा
दीपक जलता क्यों रहता है ,
ठिठुर ठिठुर के जाड़े में भी
चाँद भटकता क्यों रहता है ,
इंद्र धनुषी रंग में सज कर
सावन की रुत महकी महकी ,
मस्त हवा के चंचल झोंके
रात की जुल्फें बहकी बहकी,
चाँद छुपा के काली घटा से
इश्क़ बरसता क्यों रहता है ,
ठिठुर ठिठुर के जाड़े में भी
चाँद भटकता क्यों रहता है ,
माना चाँद भी है कुछ पागल
कुछ कुछ दीवानों सी हरकत ,
कभी वो घट कर होता छोटा
गुम होकर फिर बढ़ता अक्सर ,
रात की तन्हाई का ख़ौफ़
निग़ाह में भरता क्यों रहता है ,
ठिठुर ठिठुर के जाड़े में भी
चाँद भटकता क्यों रहता है ,