भक्ति का सागर
भक्ति का सागर
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दिल के अपने भावों का मैंने ,
फूलों का हार बना,
प्रभु के गले पहनाया,
अपने उर का अनंत प्यार।
अपने झीने से आंचल में,
भरा हुआ करूणा का भार।
कैसे इतनी पीड़ा सहूं,
करो प्रभु!मुझ पर उपकार।
पल-पल करना कृपा मुझ पर!
इस लिए बैठी हूं,
मुझ विरहन को और न सूझे,
प्यारा भक्ति का कोई दर।।
सफल हुई साधना मेरी,
मन खुशियों से हर्षाया।
प्रभु! कृपा सदा बरसे,
सब सुख तेरे चरणों में पाया।।
जो कुछ था पास मेरे,
भावों से तुमको चढ़ाया।
मुझ भक्तन के पास नहीं कुछ,
बस!जो भी था, फूलों का हार पहनाया।।
भक्ति के सागर में, मैंने पूरा संसार है पाया।
गागर से सागर में, मेरे हृदय को सुख
चैन है आया!!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,