~~ भँवरे का प्रेम~~~
इक चाहत के पीछे
भंवरा कुर्बान
होने को बेताब
हो गया
न जलने का गम
न मरने का डर
वो तो उस चाहत में
मदहोश हो गया….
खो गया न सूझता कुछ
अपने परो से भी कर बैठा
दुश्मनी,
भूल गया
इस दुनिया को
और वो उसमें खो गया…..
कितना अमर प्रेम है उसका
उस लौ में जलने को
उस की चाहत में रमने को
और खुद को समर्पित करने को
यह इश्क है ,वो उस में डूब गया …
,
चाहे वो हो रब के लिए
या हो किसी मानव के लिए
बहुत कुछ सीखा जाता है
उस का यह प्रेम से अपने
प्राणों को समर्पित करके
दुनिया से चले जाना….
बस प्रेम करो तो
भँवरे की तरह,
वरना मत करो
मतलब के लिए
बस यही था मुझ को
सब को समझाना
कर लिया तो भाव से
वो पार हो गया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ