बोल मेरी मछरी
बोल मेरी मछरी
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कभी सतह पर मचल रही तू ,
तल में जाकर उछक रही तू ,
कभी खेलती लहरों के संग , मुझे बता ओ जल की रानी !
भरे समंदर मन केे अंदर , बोल मेरी मछरी कितना पानी ?
०
शहद सरीखा नदियों का जल,
फिर से देखो जहर हो गया ,
लुटा हुआ सागर मेले में ,
अपनी मधुर हिलोर खो गया ,
तू ने देखा कहीं लुटेरा ,
बता कहाँ उसका है डेरा ,
पहरेदारों के साये में , कैसे उसकी हुई रवानी ।
भरे समंदर मन के अंदर, बोल मेरी मछरी कितना पानी ।।
०
किसकी आहें निकल रही हैं,
इसका कोई ध्यान नहीं है ,
कितने आँसू निकल रहे हैं ,
ओठों पर मुस्कान नहीं है ,
सिसक रही हैं कहाँ मल्हारें,
बिलख रही हैं कहाँ बहारें ,
पता लगे पाती भिजवाना , मिले तुझे जो कहीं निशानी ।
भरे समंदर मन के अंदर, बोल मेरी मछरी कितना पानी ।।
०
अपनी सखियों से कह देना,
जिद न करें बाहर आने की ,
बिखरे हैं पग-पग पर काँटे ,
उनसे कहना छिप जाने की ,
दावानल धधकी शहरों में ,
तुम रहना भीतर लहरों में ,
हवा बन चुकी है अब आँधी , पुरवा बहती नहीं सुहानी ।
भरे समंदर मन के अंदर, बोल मेरी मछरी कितना पानी ।।
०
बंजारा तो चला जा रहा,
गाता हुआ बताता सब को ,
पर बाँसुरिया टूट चुकी है ,
कैसे तान सुनाता जग को ,
टूट गई आशा की डोरी,
रूँठ गई ओठों से लोरी ,
नींद न आये सारी रैना , कौन सुनाये मधुर कहानी ।
भरे समंदर मन के अंदर, बोल मेरी मछरी कितना पानी ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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