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20 Oct 2021 · 1 min read

बोध,कर्तव्य का

———————–
कर्तव्यच्युत नहीं होते कभी
तरु,तरुवर;घास-फूस भी।
निर्धारित है उनका कर्तव्य।
अंकुरण से मरण तक!
मिट्टी से सोखकर सत्त्व
हमारे भरण तक।
बोध भी उनको।
भूले तुम क्यों?
ठेकेदार बुद्धि के!

क्षुधातुर तन करना शांत
नहीं है कर्तव्य।
न तो विचलित मन को ही
देकर विचार भव्य।
ऐसा करता है कर्म हमारे।
जन्म है तो मरण तक सारे।

बनो नहीं करूण।
बनाओ जीनेवाले का जीना तरुण।
तीर,तलवार उठाए बनो न रक्षक।
परहेज रखो बनने से भक्षक।
तुम मनुष्य हो
रखो खुद को बनाए मनुष्य।
जिज्ञासु जन खोज ही लेंगे
अपना-अपना भविष्य।

सूरज के गिर्द पिंड।
चलते रहना उनका।
वही नहीं,सौर-मण्डल का
तिनका-तिनका।
कर्म नहीं कर्तव्य से बंधा है।
उन पिंडों पर पनपाना जीवन
उनका
कर्म को देना अपना कंधा है।

जीव के सृजन का अतुल्य
मनुष्य-प्राण।
राजनीति में खोज रहा है
अपने और अपने वंश का उत्थान।
यह कर्तव्य मान चल रहे हैं जो।
जानें कि यह कर्म भी नहीं है।
उनके स्वर्ग में नरक है
और बस यहीं है,यहीं है।

बुद्ध न बनो न सही
बोध तो करो कर्तव्य का।
पाठ पढ़ाओ,न पढ़ाओ।
जारी रहने दो शिक्षा
एकलव्य का।
———————————————
August21

Language: Hindi
280 Views
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