बेशकीमती आँसू
*****बेशकीमती आँसू******
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निर्झर सी आँखों में से निकल कर
पलकों से क्यों बरसते हैं आँसू
गोरे गुलाबी रुखसार से होकर
सुर्ख होठों पर गिरते हैं आँसू
जिनके लिए मर मिटते हैं ताउम्र
उन्हीं के लिए निकलते हैं आसूँ
शायद वो आकर देख ले क्षण भर
गालों पे कुछ पल ठहरते हैं आँसू
होते हैं सागर के अनमोल मोती
फिर क्यों व्यर्थ में बहते हैं आँसू
क्षण भर की खुशी के बदले भी
नयनों से झलक आते हैं आँसू
यादों के झरोखे दिल पर भारी
खामख्वाह टपक जाते हैं आँसू
अपने जब हों निज से कोसों दूर
याद में उनकी आते हैं आँसू
टूटता है दिल , आवाज न आए
जज्बातों में पिंघल जाते हैं आँसू
प्रेमी के प्यार में मन भर आए
प्रेम सागर बन निकलते हैं आँसू
तड़फता अकेला गर छोड़ जाए
विरह में बूँद बूँद झरते हैं आँसू
निजी संबंधी जग हैं छोड़ जाए
जुदाई में तब टपकते हैं आँसू
डाल पर नया पंछी बैठ जाए
स्वागत में भी आ जाते हैं आँसू
सुखविन्द्र उलझनों में उलझे हुए
संभालो बेशकीमती हैं आँसू
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)