बेवफा
तुझे बेवफा कैसे कहूं,
वफा तो तुमने की ही नहीं।
साथ मरने की कसमें खाई थी,
पर साथ तो तुमने जी ही नहीं।
तुझे बेवफा . . . . . .
अब तो कभी कभार,
हवा के झोंको की तरह,
तेरी याद आ जाती है।
बीते हंसी लम्हे आंखों में,
चल चित्र की तरह,
स्वा चलित हो जाती है।
दिलों के पिछले पन्नों को,
उलट कर जब भी देखता हूं,
वो घाव जो तुमने दिए थे,
आज भी संजो कर रखता हूं।
तुझे हम दर्द कैसे कहूं,
दर्द तो तुमने ली ही नहीं।
तुझे बेवफा. . . . . .
जिंदगी एक सफर है,
और सफर में,
हमराही मिल ही जाते हैं।
कभी न कभी कहीं ना कहीं,
किसी मोड़ पे,
हम तन्हाई में तुम्हें पाते हैं।
जब भी तुम याद आती हो,
मै जानता हूं,
तुमने मुझे याद किया है।
उस एक पल में भी,
तुमने उन बीते,
लाखों पलों को जिया है।
तुझे हम सफर कैसे कहूं,
दो कदम साथ चले ही नहीं।
तुझे बेवफा . . . . . .