“बेरोजगारी”
बेरोजगारी
“बेरोजगारी” आज कुछ नही,
यह तो है, बस एक विचार।
युवाओं के अपने सपने पर,
यह तो है, बस एक प्रहार।।
सरकारी के चक्कर में सदा,
पूरा निजी मत यों त्यागिये।
जो भी मिल जाए पसंद का,
उससे कभी मत भागिए।।
किसी भी पेशा को चुनिए,
हमेशा नौकरी मत ढूंढिए।
पेशा अपना पुश्त चलाए,
नौकरी वाले खुद भरे हाय।।
जो जन है, कोई पद धारक;
नही वो है, गैरो का उद्धारक।
उस जन-मन को सदा देखिए,
जो खुद, दस का है आहारक।।
सामर्थ्य से ज्यादा सोच ही,
घर – घर “बेरोजगारी” लाए।
उम्र पार, यों कर जाता जब,
सबको तब समझ में आए।।
जो खुद का कर ले आकलन,
घर परिवार रखे सही विचार।
बैठी ताहे, नौकरी पांव पसार,
मिले चाहे, छोटी-बड़ी प्रकार।।
जो नर , दिखावे को न माने,
चाहे नही कभी झूठा प्रभाव।
संतोष रखे जो, जीवन में सदा;
उसे, नौकरी का नही अभाव।।
काम कोई, छोटा बड़ा होता नही,
भाग्य कभी किसी का सोता नही।
औरों के काम को, जो देख जले,
“बेरोजगारी” का नाम, रोता वही।।
संगत अपना सदा ,सही रखिए;
“मेहनत”सदा पुरजोर कीजिए।
“बेरोजगारी” खुद दूर जायेगा;
अच्छे दिन जीवन में आयेगा।।
कड़ी मेहनत की रोटी तोड़िए,
खाइए चाहे, जो नून लगाए।
भोजन करिए सदा उतना ही,
जितना आपका पेट पचाए।।
किसी को बड़ा यों, मत मानिये,
चाहे जो कोई कितना कमाए।
खुद की इज्जत सदा कीजिए,
किसी के सामने, बिन शर्माये।।
अब “बेरोजगारी”का न राग गाइए,
मन अपना, इतना प्रबल बनाइए।
खुद व्यस्त रहे, जीवन में सदापि;
पीढ़ी न देखे “बेरोजगारी” कदापि।।
……………… ✍️
स्वरचित सह मौलिक
पंकज “कर्ण”
कटिहार।
१७जून२०२१