बेटे की विदाई
बेटे की विदाई का
मौका जब भी आता है
उसकी तैयारी को जैसे
सारा घर जुट जाता है।
जूते चप्पल घड़ी चार्जर
ढूँढ़ो तो ही मिलते हैं
ऊपर से पापा कुढ़ते हैं
मन ही मन मे घुलते हैं।
केवल मैं कोने में छुपकर
आंसू पोंछा करती हूं
वो लापरवाह लेटा रहता
मन ही मन मैं भुनती हूँ।
झुकता है छूने को पाँव
दिल सबका भर आता है
बड़ी झिझक से सीने लगता
‘कुछ ‘भीतर टूट जाता है।
ट्रेन के दरवाजे पर
हँस के हाथ हिलाता है
आंखे गीली दिखती है
लेकिन वो मुस्कुराता है।
बेटी जैसे नहीं चहकते
पर घर की रौनक होते ।
दूर चले जाते जब बेटे
एक सूनापन दे जाते।।
धीरजा शर्मा