“बेटी”
बेटी नहीं तो कल नहीं है।
बेटी है तो सुफल यहीं है।
बेटी है तो संसार है सुंदर।
बेटी है तो अरमान है सुंदर।
अन्तरज्योति है सपनों की।
ज्योति है बेटी नयनों की।
बेटी माँ की आंचल है।
फूल बगिया की आँगन है।
भाई के कलाई की बन्धन है।
प्यारी सी दुलारी सी चन्दन है।
माँ-बाप के सपनों की रानी है।
सुख-दुख में साथ निभाती है।
दो कुलों का नाम बढाती है।
परिवार का बोझ उठाती है।
बेटी है तो घर आंगन है
परिवार में सुन्दर सावन है।
कदम से कदम मिलाती है।
आगे बढने को सिखाती है।
आज वो जहाज उड़ाती हैं।
आटो रिक्शा भी चलाती हैं।
आन्तरिक्ष भेद कर आती हैं।
दफ्तर में हाथ बटाती हैं।
अब कम्प्यूटर भी चलाती हैं।
विद्यालय में बच्चों को पढाती हैं।
बेटी है तो भरापूरा परिवार है।
फलता फूलता यह संसार है।
बेटियां ही सृष्टि संचालक हैं
बेटी सृष्टि रचना का आधार है।
@रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’
(कान्हपुर कर्मनाशा कैमूर बिहार)
०६-०१-२०१७