बेटी
माँ बेटी का रिश्ता है निराला
कभी खट्टा तो कभी चाशनी का प्याला
सिखाती माँ , बेटी को दुनियादारी
बेटी मै आ जाती जल्दी समझदारी
है बेटी का अमूल्य दुलार
जिसे मिले वह है निहाल
जब तक बेटी रहती घर में
माँ को चहक सुनाई देती दिनभर
उपचारों को देती बेटी
उपहारों को लेती बेटी
बेटी का चेहरा जब
माँ , देखे खिला-खिला
उसे जीवन दिखे
ख़ुशनसीब ज़हां ज़हां
दो दो कुल बेटी
करती रोशन
बेटी के प्यार का
अनोखा है यह दामन
माँ बेटी , बेटी माँ हैं
एक दूसरे की छाया
बेटी जन्म लेती बन
माँ की काया
बेटी रहे अंगना में बन चिडयीया
बुढापे में बनती वो माँ की खिबयीया
स्वलिखित
लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल