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25 Sep 2017 · 1 min read

बेटी

#बेटी#

माँ मै हू एक नन्ही किरण तेरे कोख की..
मै ही तो हू तेरा वजूद..

तूझमे ही तो मै हू समाई,तू ही तो है मेरी परछाई..

फिर कैसे सोच लिया एक बोझ बन आई है…
क्या शरीर से परछाई कभी अलग रह पाई है….

माँ तेरी कहानीयो मे सूना है,नारी शक्ती का रूप कहलाती है..।
तो क्यो तू अपना ये रूप खूद से छुपाती है..

क्यो छुपाती हो अपने अनकहे शब्दो को..
जो रातो की शिशकीयो मे महसूस किया है मैने..।

महसूस किया है मैने तेरे हृदय की उस पीडा,उस चिन्ता को…
जो घर,समाज ने तेरे दिल,दिमाग पर डाल रखा है..

तेरे आँखो के नीचे पडी काली धारीयाँ साफ दिखाई देते है मुझे..
बेटी पैदा होने के ताने कोख तक सुनाई देते है मुझे….

जानती हू की तू मुझे कभी मारना नही चाहोगी माँ.।
पर बेटे की चाह भी कब तक पूरी करती जाओगी माँ….

उठ जाग की अब तूझे ही नया सबेरा लाना होगा…
बेटी किसी से कम नही,सबको ये समझाना होगा…

आज की बेटी ही कल की बहू कहलाती है..
अपने कुल को छोड कर दूसरे का कुल अपनाती है…

तो फिर वंश का ठेकेदार बेटा कैसे कहलाता..
नही देता जो कोई बेटी,उसका वंश कैसे चल पाता….

उठो जागो की अभी नही देर हूई…
कल को ऐसा न हो की हमारी प्रजाती भी विलुप्त हुई..

अमृता तिवारी मिश्रा….

Language: Hindi
500 Views
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