बेटी है श्रिष्टि का आधार
बेटी है श्रिष्टि का आधार।
बेटी स्वयम् है अथाह प्यार।
बेटी का अनादर पाप।
अनदेखी घोर अभिशाप।
अभागे हैं वे यकीनन,
जो मारते हैं चुपचाप।
भ्रूण हत्या पशुवत व्यवहार।
बेटी है श्रिष्टि का आधार।
बेटी बेटे सेस ज्यादा।
पक्का है उसका वादा।
हरगिज नहीं बदला कभी,
बेटी का लौह इरादा।
बेटी में है ममता अपार।
बेटी है श्रिष्टि का आधार।
बेटी से संसार बना।
है उससे अभिमान घना।
वह पकड़े रहती कसके,
उससे जगताधार तना।
‘सहज’ गिनाए न ओ उपकार।
बेटी है श्रिष्टि का आधार।
@डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
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