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10 May 2024 · 1 min read

बे-शुमार

तेरा दर्द दिल का करार हो
जुल्म हो तो फिर बे-शुमार हो

जब न वस्ल की हो उमीद भी
वक़्त भी यहाँ तार-तार हो

तेरा जिक्र जिसमे न हो ‘अभि’
वो ग़ज़ल हमें ना-गवार हो

कोई लहर भी जब न साथ है
कैसे लाश फिर बा-कनार हो

वार हो अगर तेरे हाथ से
घाव ऐसे हम पर हज़ार हों।

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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