बेटी हुं
बेटी हूं
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हां!एक बेटु हूं मैं, नाजों से पली,
सपने क ई देखती हूं मैं।
हां एक बेटी——
बहुत ऊंचा आसमां हे मेरे ख्वाबों का,
आंचल में फिर भी सब लपेटे हूं।
हां एक बेटी—–
दिल करता है,आसमां में उड़ जाऊं,
पर!बंधनो में सिमटी हूं मैं
हां एक बेटी—–
में चाहूं तो तोड़ दूं बंधन सारे,
पर संस्कार हें अपने ,
उन्हे संभाले बैठी हूं मैं।
हां एक बेटी—-
कोमल पंखुड़ी सी आंखे,
धरा पर खोली थी मैने,
मां!की गोद ऐसी लगी
जैसे फूलों के आंचल में लेटी हूं मैं!
हां एक बेटी—–
सखियों का साथ पाया,
तो खुश हुई में, एहसास हुआ जब मुझे
कि अब बड़ी हो गई हूं मैं।
हां एक बेटी—–
विवाह कर एक नया संसार पाया,
नये रंगो से जिंदगी को सजाया,
खुशियों के मोती,समेटे हूं मैं।
हां एक बेटी—–
मां!बनकर गर्व कर रही हूं
भाग्य पर अपने।
नव जीवन, नया संसार की,
कसौटी हूं मैं।
हां एक बेटी—–
सुषमा सिंह *उर्मि,,