बेटी की ताकत पहचाने
बेटी की ताकत पहचानें , भले पकाती रोटियाॅं।
बात बुलंदी से वह कहती, चढ़ जाती हैं चोटियाॅं।।
चहक- चहक कर खेला करती,वही पुराने खेल को,
बचपन की यादें दे जाती, खेला करती गोटियाॅं।
अंतरीक्ष तक पहुॅंच बनाई, परचम भी लहरा दिया,
डाल -डाल से पात -पात तक, पीछे कहीं न बेटियाॅं।
घर आंगन सूना कर जाती,द्विरागमन की बात से,
अपने यौवन को पाते ही,घर बजती शहनाइयाॅं।
मातु- पिता को दिल से चाहे,मन में कहीं न रोष है ,
लाज कुलों की है वह रखतीं,करे नहीं रुसवाइयाॅं।
डी. एन. झा ‘दीपक’ ©