“बेटी की ईच्छा”
उजाडूंगी खुद स्वप्न महल भी,
असल नींव रच जाने दो पापा!
शादी भी हो जाएगी,
बस कुछ बन जाने दो पापा।।
‘पूंजी की कूंजी’ और ‘लक्ष्मी’ भी कह दिए।
उम्र भर की जमा पूंजी आंचल मेरे भर दिए।
होकर पराया धन,सिर अपने ऋण कैसे सह पाऊंगी?
भाई की बराबरी बोलो फिर कैसे कर पाऊंगी?
जिम्मेदार बेटी का भी तो फर्ज़ निभाने दो पापा!
शादी भी हो जाएगी बस कुछ बन जाने दो पापा।।
ताउम्र की ये जमा पूंजी, चार तानों में दब जाएगी।
कच्ची-कंवल-कलि की कमर, कर्तव्यों से कस जाएगी।
सोने के पिंजरे लाँघते, पर भी सिकुड़ने लगेंगे।
मुझ पर हक़ जताते पापा, आप ही हिचकने लगेगें।
मुझ तक आती आपके कदमों की, राह बनाने दो पापा!
शादी भी हो जाएगी बस कुछ बन जाने दो पापा।।
ख़्वाब है मेरा, मैं भी कुल का नाम रौशन करूं।
‘कोकिला’ की ‘गोपी बहू’ महज़ बनकर न मरूं।
चांदी – सोने के जेवर नहीं, मेरे स्वाभिमान को स्थान दो।
पहचानो निकलती परों को, मेरे हौसलों को उड़ान दो।
अपनी एक पहचान औकात, एक औकात बनाने दो पापा!
शादी भी हो जाएगी, बस कुछ बन जाने दो पापा।।
बस कुछ बन जाने दो पापा……
ओसमणी साहू रायपुर ( छत्तीसगढ़ )