बेटियाँ
#बेटियाँ / दिनेश एल० “जैहिंद”
( १ )
बसी है इनमें मानव जन्म की कुंडलियाँ |
छुपी हैं आदि से अंत तक की कहानियाँ |
होती हैं हमारी बेटियाँ हमारे परिवार में,,
लक्ष्मी, गौरी, माँ शारदे के समान देवियाँ ||
( २ )
किसी बेटे से कम नहीं हैं हमारी बेटियाँ |
हमारे बूढ़ापे की लाठी हैं दुलारी बेटियाँ |
आख़िर क्यों आँगन में खिलने से पहले,,
हम उनपे बेझिझक चलाते हैं यूँ आरियाँ ||