“बेजुबान का दर्द”
“बेजुबान का दर्द”
भाषा नहीं उसके पास
कि वो समझा सके,
हाथ नहीं उसके पास
कि दुनिया बसा सके।
फिर भी ये जमाना
उसपे क्यों जुल्म ढाता है,
कोई उसे मार देते
तो कोई उसे सताता है।
“बेजुबान का दर्द”
भाषा नहीं उसके पास
कि वो समझा सके,
हाथ नहीं उसके पास
कि दुनिया बसा सके।
फिर भी ये जमाना
उसपे क्यों जुल्म ढाता है,
कोई उसे मार देते
तो कोई उसे सताता है।