बेचैन क्यूं हैं
ये दुनिया है जनाब, रहिए ज़रा संभलकर
रिश्ते भी निभते यहां अपनी सहूलियत देखकर…
यूं न खोलिए सबके सामने, अपने दिल की गांठें
लोग चल देते हैं तुम्हारा सब सामान बिखेरकर…
अब किससे कहें कि करे दवा इस दर्द की
हमने खुद ही देखा है सांप गले में लपेट कर…
तेरी यही ज़िद है ज़िन्दगी अगर ,तो यह ही सही
हम भी तैयार बैठे हैं अपना सब सामान समेटकर…
वक़्त नहीं मिलता,जो कहते रहते थे अक्सर
बेचैन क्यूं हैं वो, वक़्त को ठहरा देखकर…
बहुत उदास हैं मेरे शहर की गालियां आजकल
चला गया है मानो कोई, इनका इनसे रूठकर…