बेकाबू मन
*** बेकाबू मन ***
***************
काबू किया मेरा मन
वस में नहीं मेरा तन
मन से ही रहे जाती
सीधी राहें ओर तन
भड़के देह में ज्वाला
प्रेमाग्नि में मेरा मन
भावों का घना साया
छाया अंदर मेरे मन
रोम रोम में वसे हो
प्रेममयी हुआ तन मन
तीर लगा है निशाने
मुर्छित हुआ मेरा तन
चले कोई न बहाना
अचेतन है मेरा मन
प्रेम सागर के गोते
बेकाबू हुआ तन मन
सुरमयी मेरा जीवन
संगीतमयी है तन मन
सुखविंद्र खोया खोया
होशोहवास में न मन
*****************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)