Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Sep 2019 · 5 min read

बुलेट ट्रेन का सच बनाम मोदी का झूठ

खास तौर पर इन दो-तीन वर्षों में जाना कि दुनिया में भक्तिभी कैसी कुत्ती चीज होती है. यह भी जाना कि किस कदर भक्ति में डूबे लोगों को अपनी बुद्धि या तो गिरवी रख देनी पड़ती है, या बेच ही देनी पड़ती है. तभी तो हमारे भक्तगण अपने आराध्य की भक्ति में लीन होकर यह भावगीत आलापते हैं – मैं मूरख, खल, कामी कृपा करो भर्ता.’ इस तरह भक्तगण-मूर्ख, दुष्ट, कामी-तीनों ही दुर्गुणों को अपने आप में स्वीकार कर लेते हैं. ऐसे लोगों के प्रति आप या तो दुख व्यक्त कर सकते हैं या कोफ्त ही कर सकते हैं, इससे अधिक क्या कर सकते हैं? तुलसी बाबा ने भी यह कहा है – ‘फूलहिं सकहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलधि। मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं विरंचि सम।।’ अब जो पाठक रामचरितमानस नहीं पढ़े हैं या अवधी भाषा नहीं समझते उनके लिए इस पंक्ति का अर्थ भी बताते चलूं. उक्त चौपाई का अर्थ है- ‘बेंत नामक पौधा कभी नहीं फूल सकता, चाहे बादल उस पर अमृत ही क्यों न बरसा दें. इसी तरह मूर्ख व्यक्तिको कभी ज्ञान नहीं हो सकता, चाहे उसे साक्षात ब्रह्मा के समान ही गुरु क्यों न मिल जाएं.’ जब भक्त स्वयं ही अपने आपको मूरख, खल और कामी बतलाते हों तो मैं मामूली इनसान उन्हें भला क्या समझा सकता हूं जिन्हें जब स्वयं विरंचि (ब्रह्मा जी) भी नहीं समझा सकते इसलिए मेरी यह पोस्ट भक्त-टाइप के लोगों के लिए नहीं हैं, प्रबुद्ध और खुले दिमाग के सामान्य पाठकों के लिए है.
आपको याद ही होगा कि हमारे देश के परमश्रेष्ठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर अपने ही गृह राज्य गुजरात में (जहां इस वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं) जापान के प्रधानमंत्री को बुलाकर बुलेट ट्रेन परियोजना को हरी झंडी दिखाते हुए कहा था- ‘जापान यह ट्रेन भारत को लगभग मुफ्त में दे रहा है. इसके लिए जापान हमें कुल 88000 करोड़ रुपए का ऋण 0.1 प्रतिशत की दर से देगा, जो हमें पचास साल में चुकाना होगा.’ ऐसा कहते हुए बाद में उन्होंने अपनी पीठ आप ही थपथपा ली.
तो मित्रों, मोदी जी के उक्त वक्तव्य का हम जरा सांख्यिकी केलकुलेशन करते हैं. 0.1 प्रतिशत की ब्याज-दर नगण्य-सी लगती है पर यह नगण्य है नहीं. इस दर से पचास साल में हमें 88 हजार करोड़ रुपए से लगभग दोगुना पैसा देना पड़ सकता है. क्या आपको पता है कि जापान में इस समय दस वर्ष के बांड की ब्याज दर 0.04 प्रतिशत है. अब यह जानकर माध्यमिक शाला का एक औसत विद्यार्थी भी बता नहीं सकता है कि जापान यह हमें मुफ्त में नहीं दे रहा है.
खैर, जापान से हमें फिलहाल क्या लेना-देना, पर क्या हमारे लिए यह सौदा घाटे का है?, क्या देश को सचमुच ऐसी किसी बुलेट ट्रेन की जरूरत है?, दो शहरों को जोड़ने वाली इस रेलगाड़ी पर एक लाख दस हजार करोड़ रुपए का खर्च करने के बजाय क्या यह पैसा देश की भूख, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य-सेवा आदि पर खर्च करना ज्यादा उचित नहीं होता? आखिर हम यह भी तो ईमानदारी से तय करें कि हमारी विकास की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? बुलेट-ट्रेन के समर्थक ऐसे प्रश्नों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि तेजी से बदलती दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए ऐसी परियोजनाएं जरूरी होती हैं. वे यह भी कहते हैं कि बुलेट ट्रेन सिर्फ गति ही नहीं लाएगी, रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराएगी. तर्क यह दिया जा रहा है कि इस महान परियोजना के लिए कच्चा माल और कामगार तो भारत के ही होंगे. लेकिन मेरे प्रिय मित्रों, भाइयों और बहनों! जापान के साथ हुए इस समझौते में तकनीक के हस्तांतरण का कहीं उल्लेख नहीं है. जापान ने यह भी कहा है कि वह इसकी सुरक्षा की गारंटी तभी देगा, जब समूची प्रणाली का निर्माण वही करेगा. स्पष्ट है यह शर्त बुलेट ट्रेन की भावी योजनाओं पर भी लागू होगी. अर्थात ‘मेक इन इंडिया’ तो होगा पर ‘मेड इन इंडिया’ नहीं होगा. तकनीक की चाबी जापान के पास ही रहेगी. तकनीक के हस्तांतरण के इसी मुद्दे पर चीन और जापान में बुलेट ट्रेन के लिए होने वाला समझौता रद्द हो गया था. चीन को यह स्वीकार नहीं था कि तकनीक की चाबी जापान के पास ही रहे. इसलिए चीन ने अपना ताला बनाया और अपनी चाबी भी.
खैर, जहां तक बुलेट ट्रेन की उपयोगिता का सवाल है, यह अभी तो मात्र शान का एक प्रतीक ही साबित होगी. हमारी हकीकत यह है कि वर्तमान में रेलवे के 95 प्रतिशत यात्री राजधानी और शताब्दी जैसी तेज रफ्तार गाड़ियों का भी इस्तेमाल नहीं करते. ये गाड़ियां भी भारतीय उपभोक्ता को इतनी महंगी लगती हैं कि पांच प्रतिशत भारतीय यात्री ही उनसे यात्रा करते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि बुलेट ट्रेन से हमारी आबादी का मात्र पांच प्रतिशत हिस्सा ही लाभान्वित होगा. इस ट्रेन के किराए के जो अनुमान सामने आ रहे हैं, उन्हें देखकर तो यही लगता है कि इस छोटे से समूह के लिए भी हवाई-यात्रा अधिक अनुकूल होगी.
आपको क्या पता है कि पिछली यूपीए सरकार के समय में तत्कालीन वित्त सचिव ने यह कहा था – ‘जापान के ऋण देने की तो छोड़ो, वह अगर अनुदान में ही सारी राशि दे दे, तब भी वे बुलेट ट्रेन परियोजना को सहमति नहीं देंगे.’ अब यह साफ है कि पहले जिस परियोजना को पिछली सरकार ने रिजेक्ट कर दिया था, आज उसी बुलेट ट्रेन परियोजना को हरी झंडी देकर तथाकथित विकास-पुत्र मोदी जी अपनी पीठ थपाथपा रहे हैं.
एक और बात महत्वपूर्ण है कि बुलेट ट्रेन के किराए को आम आदमी की पहुंच में रखने के लिए प्रतिदिन लगभग एक लाख यात्रियों को यात्रा करना जरूरी होगा. जबकि आज की हालत यह है कि इस मार्ग पर औसतन अठारह हजार यात्री ही रोज यात्रा करते हैं. चलो मित्रों, यह मान भी लेते हैं कि यात्रियों की संख्या आने वाले समय में बढ़ सकती है, तब भी यह सवाल है ही कि हमारी प्राथमिकता तेज रफ्तार रेलगाड़ी होनी चाहिए या तेज रफ्तार आर्थिक व्यवस्था? हमारी प्राथमिकता गति होनी चाहिए या रोजगार? किसानों की आत्महत्याएं, बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई का कम न होना, स्वास्थ्य-सेवाओं की शोचनीय स्थिति, औद्योगिक विकास की धीमी गति को क्या बुलेट ट्रेन की तेज रफ्तार गति दे सकती है या भारी पड़ सकती है? इस बात पर प्रबुद्ध पाठक जरा गंभीरता से विचार करें, भक्तों से तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती.
-फेसबुक में पोस्ट 11 अक्टूबर 2017

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 1 Comment · 853 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अब लगती है शूल सी ,
अब लगती है शूल सी ,
sushil sarna
मिट्टी
मिट्टी
DR ARUN KUMAR SHASTRI
" विडम्बना "
Dr. Kishan tandon kranti
3427⚘ *पूर्णिका* ⚘
3427⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
सब्र करते करते
सब्र करते करते
Surinder blackpen
*ग़ज़ल*
*ग़ज़ल*
शेख रहमत अली "बस्तवी"
यादों के तटबंध ( समीक्षा)
यादों के तटबंध ( समीक्षा)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
बम
बम
Dr. Pradeep Kumar Sharma
प्रेम है तो जता दो
प्रेम है तो जता दो
Sonam Puneet Dubey
बनी दुलहन अवध नगरी, सियावर राम आए हैं।
बनी दुलहन अवध नगरी, सियावर राम आए हैं।
डॉ.सीमा अग्रवाल
दर्द
दर्द
SHAMA PARVEEN
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -188 से चुने हुए श्रेष्ठ दोहे
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -188 से चुने हुए श्रेष्ठ दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
न्याय यात्रा
न्याय यात्रा
Bodhisatva kastooriya
******** प्रेरणा-गीत *******
******** प्रेरणा-गीत *******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हम गुलामी मेरे रसूल की उम्र भर करेंगे।
हम गुलामी मेरे रसूल की उम्र भर करेंगे।
Phool gufran
बॉलीवुड का क्रैज़ी कमबैक रहा है यह साल - आलेख
बॉलीवुड का क्रैज़ी कमबैक रहा है यह साल - आलेख
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
आंखों की गहराई को समझ नहीं सकते,
आंखों की गहराई को समझ नहीं सकते,
Slok maurya "umang"
बहुत  ही  खूब सूरत वो , घर्रौंदे  याद आते है !
बहुत ही खूब सूरत वो , घर्रौंदे याद आते है !
Neelofar Khan
"विजयादशमी"
Shashi kala vyas
क़िस्मत का सौदा करने चली थी वो,
क़िस्मत का सौदा करने चली थी वो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बुझदिल
बुझदिल
Dr.Pratibha Prakash
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
सत्य कुमार प्रेमी
आंखे मोहब्बत की पहली संकेत देती है जबकि मुस्कुराहट दूसरी और
आंखे मोहब्बत की पहली संकेत देती है जबकि मुस्कुराहट दूसरी और
Rj Anand Prajapati
जिंदगी बहुत आसान
जिंदगी बहुत आसान
Ranjeet kumar patre
खाली सड़के सूना
खाली सड़के सूना
Mamta Rani
ज़िंदगी चाँद सा नहीं करना
ज़िंदगी चाँद सा नहीं करना
Shweta Soni
माँ मुझे विश्राम दे
माँ मुझे विश्राम दे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
सवाल ये नहीं
सवाल ये नहीं
Dr fauzia Naseem shad
*रथ (बाल कविता)*
*रथ (बाल कविता)*
Ravi Prakash
वज़्न - 2122 1212 22/112 अर्कान - फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन/फ़इलुन बह्र - बहर-ए-ख़फ़ीफ़ मख़बून महज़ूफ मक़तूअ काफ़िया: ओं स्वर रदीफ़ - में
वज़्न - 2122 1212 22/112 अर्कान - फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन/फ़इलुन बह्र - बहर-ए-ख़फ़ीफ़ मख़बून महज़ूफ मक़तूअ काफ़िया: ओं स्वर रदीफ़ - में
Neelam Sharma
Loading...