“बुलंद हौसले”
“मेरी जीवनशैली पर प्रश्नचिन्ह,
जब किसी ने लगाया,
सही क्या गलत क्या हमें समझाया,
क़द बढ़ता हुआ-सा नज़र अपना आया ,
किसी ने सच ही कहा है हमें याद है ,
लोहे की शुद्धता पर किसने उँगली उठाया,
सोना है जिसे परखा गया,
किसी ने गौर से देखा किसी ने जलाया,
इंसां है नही हैं हम खिलौना,
बिन चाभी हमें है चलना आता,
वक़्त का पहिया ज़रा घूम जाता,
शौक रखता जो सुर्खियो में रहने की,
अक्सर देखा है हमने औकात उसकी,
रद्दी के भाव में कैसे बिक जाता,
भँवर से लड़ो,लहरों से उलझो,
कब तक सहम के चलोगे किनारे -किनारे,
मौजों की रवानी,मस्ती सुहानी,
किनारों पर बैठे कहा समझ आता,
हमने तो पाँवों के छाले ना देखे,
मंज़िल की जुस्तजू में सफ़र जारी रखा,
आँधियों में चिराग जलाने की ज़िद्द थी,
हवा थक गयी बुझाते-बुझाते,
हज़ार बर्क गिरे लाख आंधियां चली,
अँधेरी रातों को पर्दे में रोशन करते रहे ,
बुझती शमा को जलाते-जलाते,
जिस हाल में लोग मरने की दुआ करते है,
उस हाल में हम ज़िंदगी जिया करते हैं,
मौजों की सियासत से मायूस नही होते,
गिर्दाब की हर तह में साहिल देखा करते हैं,
गमों की धूप से आगे जाकर खुशियाँ लाते हैं,
बुलंद हौसले रख तूफ़ानों से लड़ जाते हैं,
चलते रहो नही तुम रुको,
सीखा यही, यही हमने जाना,
ठहरे हुए जल से आती है बदबू,
बहते हुए जल को पावन है माना,
ऐबो को हमने हुनर है बनाया,
तजुर्बे की मोती का माला बनाकर
लफज़ो को कविता में हमने सजाया “