बुलंदियाँ
दिनांक 9/4/19
बेटियां जब छूए बुलंदियाँ आसमां तलक
तो गजल होती है
बै-कोफ निकले बेटियाँ जब घर से
तो गजल होती है
घर में रहे जब सब खुशमिज़ाज
तो गजल होती है
बुजुर्ग रहे खुशहाल घरों में
तो गजल होती है
फकीर के जब फैले हाथ
दुआओं के लिए तो गजल होती है
मौला बरसाए जब रहमत बच्चो पर
तो गजल होती है
गजल जब खुद ही
कसे कसीदे गजल पर
ऐ दोस्त तब गजल होती है
न हो मोहताज गजल जब किसी की
मेरे दोस्त तो गजल होती है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल