“बुरे को बुरा ही बोल देता हूँ तो बुरा हूँ मैं”
बुरे को बुरा ही बोल देता हूं ,इसीलिए बुरा हूं मैं
गाता हूं सच्चाई के नग़मे ,इसीलिए बेसुरा हूं मैं
मुझपे किसी का ज़ोर नहीं बेढंगी मेरा तौर नहीं
कह देता हूं बेबाक़ी दिल,इसीलिए सरफिरा हूं मैं
सौदागिरी मुझें मालूम नहीं आन का बना पूत मैं
थोड़ा गुस्सैल थोड़ा सनकी ,इसीलिए गिरा हूं मैं
साफ़ कहना गुनाह तो नहीं गुनाह नहीं जज़्बात
बग़ावती मेरे अल्फाज़ो साज़ इसीलिए सिरा हूं मैं
गंध मुझें बर्दाश्त नहीं बर्दाश्त नहीं मुझें धोखाधड़ी
उखाड़ता हूं बातें गड़ी गड़ी इसीलिए किरकिरा हूं मैं
—अजय “अग्यार