बिहार के एक कवि वीरचन्द्र दास बहलोलपुरी की शानदार कविता
बाल शिक्षा कविता पाठ
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मास्टर आ
खिचड़ी पका
खिचड़ी चख
खिचड़ी खिला
हिसाब रख
हाजिरी का
गिनती मिला
रजिस्टर पर
नाम लिख
किताब फेंक
कलम पकड़
लेन-देन
ठीक कर
बकरी गिन
गदहा गिन
डाटा बना
स्कूल छोड़
ऑफिस दौड़
पढ़ना छोड़
पढ़ाना छोड़
फर्स्ट डिवीजन
नम्बर डाल
सवाल का
उत्तर कबूतर
भूल जा
पन्ना गिन
नंबर का
खजाना खोल
नोट से
तौल कर
नम्बर दे
नम्बर दिला
मास्टर आ
बैठ जा
सू-सू कर
नीति की
लकड़ी ला
चिता सजा
शिक्षा का
सिंगार कर
हाथ पैर
बांध कर
चिता पर
डाल दे
चंदन ला
घी उड़ेल
दाह का
सुसंस्कार
पूरा कर
शिक्षा को
सती बना
मास्टर आ
नौकरी बचा
मुंह पर
ताला लगा
हवा बयार
देख कर
जीभ हिला
बाँस ला
गड्ढा खोद
बाँस गाड़
बाँस पर
ऊपर जा
नीचे आ
ऊपर नीचे
आना जाना
चालू रख
मास्टर आ
साइकिल बाँट
दुकान से
कमीशन खा
सीडी बना
किरानी बन
वेतन उठा
सुशासन का
पाठ पढ़ा
विद्या के
अर्थी को
बोका बना
अर्थिन को
उड़ने वाली
परी बना
शिक्षा की
शान बढ़ा
मास्टर आ
डांट-डपट की
मिर्ची को
नाला में
डाल आ
फेल का
वजनी झंडा
दरिया में
फेंक दें
सजा की
छड़ी को
आग में
जला डाल
शिक्षा के
पत्तों को
फुहारा दे
जड़ को
चूहा बन
कुतर डाल
नौकरी के
बिल में
दुबक जा
विकास के
नाम पर
जंगल की
आग से
बच जा
मास्टर आ
नौकरी बचा।