बिल्ले राम
बिल्ली से शादी करने को,
बिल्ले राम बने जब दूल्हा।
सोच रहे थे मन ही मन में,
बिल्ली करेगी चौका-चूल्हा।
दुल्हन बन बिल्ली घर आई,
खाती जी भर दूध – मलाई।
दिन भर करती वो आराम,
उसे न भाता घर का काम।
बिल्ले राम उसे समझाये,
बिल्ली गुस्से से भर गुर्राये।
कहती जो है काम कराना,
ढूँढ के तुम नौकरानी लाना।
बिल्ले राम मन में पछताये,
बिल्ली क्यों ब्याह के लाये?
अकेले घर – घर मँडराते थे,
चूहे पकड़ – पकड़ खाते थे।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०).
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)
दिनांक :- २५/०५/२०२१.