बिन गवाही के ही फ़ैसला हो गया
बिन गवाही के ही फ़ैसला हो गया
आज कानून ज़रदार का हो गया
बन्द पिंजरे में ऐसा भी क्या हो गया
सिर्फ़ आई क़ज़ा वो रिहा हो गया
ये चमत्कार कैसे भला हो गया
हार पक्की थी पर जीतना हो गया
ये हुआ हादसा कल के तूफ़ान में
गर्द में गुम कहीं क़ाफ़िला हो गया
उससे नज़रें मिलाकर हैं हैरान सब
वो ख़ुदा की कसम आइना हो गया
ख़त पते का जो भेजा गया बाद में
वो पता भी कहीं लापता हो गया
ये तग़ाफुल तेरा देखकर हमक़दम
दूर जाये बिना फ़ासला हो गया
ज़ह्’र खाने से आई नहीं मौत भी
ज़ह्’र वो ज़िन्दगी की दवा हो गया
मुफ़लिसी की वज़ह से न रिश्ते रहे
और ‘आनन्द’ भी बेवफ़ा हो गया
शब्दार्थ:- ज़रदार=धनी, मालदार, तग़ाफुल=ध्यान न देना, उपेक्षा
– डॉ आनन्द किशोर