“बिना पहचान के”
“बिना पहचान के”
आज जमाना बदल गया है
बिना पहचान के
शहर और महानगर क्या
गॉंव तक नहीं मुस्कुराता,
वो तो केवल दर्द है
जो बिना पहचान के भी
वक्त-बेवक्त
पास चला आता।
“बिना पहचान के”
आज जमाना बदल गया है
बिना पहचान के
शहर और महानगर क्या
गॉंव तक नहीं मुस्कुराता,
वो तो केवल दर्द है
जो बिना पहचान के भी
वक्त-बेवक्त
पास चला आता।