बिछड़ता इश्क़
इश्क़ के मज़ार पर चादर चढ़ाने आए हैं वो
अब किसी और के हो गए बताने आए हैं वो
मुस्कुराकर आँसु पोंछने की गुज़ारिश उनकी
पल भर चुप करा उम्र भर रुलाने आए हैं वो
‘दोस्त’ बनकर न रह सकेंगे ‘अजनबी’ बेहतर
संग बिताए लम्हों की यादें मिटाने आए हैं वो
कोई सबूत न रह जाए कि मरासिम था कभी
साँस लेते सभी ख़तों को दफ़नाने आए हैं वो
जात ओ धर्म का मसअला है दरम्यान अपने
कहा ज़माने का बा दस्तूर निभाने आए हैं वो
क्या बदला नज़र नज़रिया या नियत ‘महवश’
पूछे कोई उनसे पर ये थोड़े बताने आए हैं वो !
सर्वाधिकार सुरक्षित-पूनम झा (महवश)