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29 Oct 2020 · 1 min read

बिंदी तो मासूम थी जो सिर्फ इशारे करती थी

बिंदी तो मासूम थी जो सिर्फ इशारे करती थी,
ये कमबख्त झुमके तो आवाज़ देकर बुलाते हैं.

यूँ आसमा में बादल बरसने को तैयार ही थे
ये कमबख्त जुल्फें गालों से उन्हें आजमाते हैं

नागिन सी लचक जाती हैं जब तुम्हारी कमर
ये कमबख्त कमर धानी भी शर्मा जातें हैं

कोई भी ताल कर नहीं सकता हैं मुकाबला
इस कमबख्त पायल को जब झनकाते हो

यावि साथ छोड़ने को कभी सोचना भी नहीं
ये कमबख्त तेरे ख्वाब भी मुझे ही डराते हैं

✍️रवि कुमार सैनी ‘यावि’

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