समय गुंगा नाही बस मौन हैं,
पानी के छींटें में भी दम बहुत है
ग़ज़ल- हूॅं अगर मैं रूह तो पैकर तुम्हीं हो...
जाने वाले बस कदमों के निशाँ छोड़ जाते हैं
"जब आपका कोई सपना होता है, तो
*चलते-चलते मिल गईं, तुम माणिक की खान (कुंडलिया)*
अपने पुस्तक के प्रकाशन पर --
तब याद तुम्हारी आती है (गीत)
हाइपरटेंशन(ज़िंदगी चवन्नी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उसकी सूरत देखकर दिन निकले तो कोई बात हो
Dr. Shailendra Kumar Gupta
Hum tumhari giraft se khud ko azad kaise kar le,
हम यह सोच रहे हैं, मोहब्बत किससे यहाँ हम करें
कुछ मीठे से शहद से तेरे लब लग रहे थे
यारों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
छन-छन के आ रही है जो बर्गे-शजर से धूप
17- राष्ट्रध्वज हो सबसे ऊँचा