बावरे मन की बावरी बातें
बावरे मन की बावरी बातें
होते जो चार हाथ, हो जाते काम आसान
होते जो सुंदर पंख , उड़ जाती आसमान
ये बावरा मन करता रहता बावरी बातें
बन तितली उड़ती फिरूं, उपवन उपवन
बन जाती मां की ,फिर से छोटी बिटिया
होती निष्कपट,निश्छल फिर से वही दुनिया
कभी उछलती, कूदती ,कभी लगाती दौड़
बावरी मैं,खेलती फिर से, गुड्डा गुड़िया
कभी जाने न देती, हर्ष ओ उल्लास को
आने न देती कभी, दर्द और विषाद को
प्रेममयी और अनुरागी, होती दुनिया सारी
विरह वेदना से परे ,लगती कितनी, प्यारी
बावरे मन की बावरी बातें, होती बड़ी न्यारी
चिड़ियों सी चहकती, गाती गीत बैठ, डाली डाली
निहारती चांदनी के चांद को, बनकर मैं चकोर
पीड़ा का कहीं नाम न हो,सोचती भाव विभोर